तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

जब आप ही ये आग लगाएं तो क्या करें



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उल्फत में अपना दिल न जलाएं तो क्या करें।
जब आप ही ये आग लगाएं  तो  क्या  करें ।।

मजबूरियों के नाम शिकस्ता है अज़्म भी ।
तीरे नज़र वो  दिल में चुभाएँ तो क्या करें ।।

हम तो वफ़ा के नाम  पे  कुर्बान  हो  गये ।
वो बेवफा ही कह के बुलाएं तो क्या करें ।।

मर्जी खुदा की  थी  जो हमें  इश्क़  हो  गया ।
कुछ लोग अब सवाल उठाएँ  तो क्या  करें ।।

जुल्मो सितम तो आपका  काफूर हो  रहा ।
अब मुस्कुरा के भूल न जाएं तो क्या करें ।।

रक्खा है रह्म मौला ने सबके  लिए  बहुत ।
दैरो  हरम से  दूर  वो  जाएं  तो क्या करें ।।

क्या क्या नहीं किया है मुहब्बत के  वास्ते ।
नजरें वो हम से रोज  चुराएं  तो क्या करें ।।

जाहिद   नहीं  वो  जाम  हमारे  नसीब  में ।
कीमत वो सुबहो शाम बढ़ाएं तो क्या करें ।।

जब उसने  मैकदे  में हमें  फिर  बुला  लिया ।
अब तिश्नगी भी हम न  मिटाएं तो  क्या करें ।।

कुछ तो  हमें  भी  इल्म  जरूरी है  आपसे ।
चहरे से जब नकाब  हटाएँ  तो  क्या  करें ।।

अब कोशिशों पे आपका इल्जाम बन्द हो ।
चलने लगीं खिलाफ हवाएं तो क्या  करें।।

         -- नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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