तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

ग़ज़ल - तिश्नगी फिर कयामत हुई

212 212 212
ज़ुल्फ़  में   जब   नज़ाकत   हुई ।
तिश्नगी     फिर   कयामत  हुई ।।

वक्त  की   कुछ   सियासत  हुई ।
आप   से   जो   मुहब्बत    हुई ।।

जिस  गली  से  गुजरते  हैं  वो ।
उस   गली   में   इबादत   हुई।।

मिल   गई  जो  नज़र   आपसे ।
आरजू    ये     सलामत    हुई ।।

है  अलग  हुस्न  कुछ  आपका ।
आप   ही   की  हुकूमत   हुई ।।

यूँ   संवरते    गए   आप   भी ।
जब  अदा  की   इनायत  हुई ।।

अब   चले  आइये  बज्म   में ।
आपकी  अब   जरूरत  हुई ।।

जाइये  रूठ  कर  मत  कहीं ।
आपसे   कब   अदावत  हुई ।।

है   तकाजा   यहां   उम्र   का ।
आईनों    की   हिदायत   हुई ।।

कुछ   अदाएं   मचलने  लगीं ।
आंख  से जब  हिमाकत हुई ।।

चल दिये तोड़कर  दिल  मेरा ।
कौन   सी  ये  शराफ़त   हुई ।।

जब   हुई   मैकसी  जश्न    में ।
मैकदों  तक   शिकायत  हुई ।।

टूटकर    हम    बिखरते   रहे ।
आप  से  कब   रियायत  हुई ।।

जीत  कर  आ  गए इश्क़  में ।
वो  जमीं  अब  रियासत   हुई ।।

         -- नवीन मणि त्रिपाठी

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