तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 3 जून 2017

ग़ज़ल --नफरत का सियासत में चलन देख रहे हैं

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अब हम भी  ज़माने का सुख़न देख रहे हैं ।।
बिकता  है  सुखनवर  ये  पतन देख रहे हैं ।।

बदनाम न्  हो  जाये  कहीं  देश का प्रहरी ।
नफरत का सियासत में चलन  देख रहे हैं ।।

वो  मुल्क  मिटाने  की  दुआ  मांग  रहा   है ।
सीने  में   बहुत  आग   जलन  देख  रहे  हैं।।

सब भूंख मिटाते हैं वहां  ख्वाब दिखा  कर ।
रोटी   की  तमन्ना  का  हवन  देख  रहे  हैं ।।

वादों  पे  यकीं  कर के गुजारे  हैं कई साल ।
मुद्दत  से  गुनाहों  का  चमन  देख  रहे  हैं ।।

लाशों   में  इज़ाफ़त  तो  कई  बार  हुई   है ।
अम्नो  सुकूँ  का  आज शमन देख  रहे  हैं ।।

इज्जत जो लुटी आज सड़क पे है तमाशा ।
चेहरों पे  जलालत का  शिकन देख रहें हैं ।।

पत्थर  वो  चलाते  है सरे  आम  वतन  पर ।
बदले  हुए  मंजर  में  चुभन  देख  रहे   हैं ।।

भगवान  से  क्यों  दूर  हुए  आज  पुजारी ।।
दौलत  के  ठिकानों  पे  भजन  देख रहे हैं ।।

रोटी  ही  नहीं पेट  में जीना भी  है मुश्किल ।
अब  रोज तबस्सुम  का  दमन  देख रहे हैं ।।

नम्बर मे वो अव्वल था वो कोटे में नहीं था ।
इंसान की  हसरत  पे  कफ़न  देख  रहे  हैं ।।

           ---  नवीन मणि त्रिपाठी
               मौलिक अप्रकाशित

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