तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

थी हराम की जो रकम मिली उसे वक्त पे न खपा सका

11212   11212   11212   11212
नए  हादसों  का  ये  दौर है कई जख़्म थे न बता  सका ।
है  तिजोरियों पे  मुसीबतें मैं सुकूं अमन भी न ला सका ।।

पली मुद्दतों से जो ख्वाहिशें  वो चली गयीं  हैं  गुमान से ।
थी हराम की जो रकम मिली उसे वक्त पे न खपा सका ।।

ये अजीब मुल्क परस्तियाँ  ये  नया नशा भी  कमाल है ।
तू उजाड़ दे न ये घर मेरा तुझे  मुल्क  से  न  हटा सका ।।

बड़ी कोशिशें पे नज़र हुई वो न कुर्सियों पे सभंल सकें । 
वो मुकाबलों का निजाम है न मिटा सका न हरा सका ।।

तेरे  फैसलों  ने  सितम  किये  मेरी आबरू भी जुदा हुई ।
है चुनाव सर पे खड़ा हुआ मैं हिसाब तक न लगा सका ।।

          ---नवीन मणि त्रिपाठी

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