तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 20 जुलाई 2016

अपना नकाब रुख़ से हटाया न कीजिये

मेरे ज़ख़म की  याद मिटाया  न  कीजिये ।
मुझको मेरा  नसीब  पढ़ाया  न कीजिये ।।

माना  कि मुहब्बत से  तुझे  वास्ता  नही ।

यह बात सरे आम  बताया  न  कीजिये ।।

हो आग बुझाने  के  सलीके  से  बेखबर ।

पानी  में कभी आग  लगाया  न कीजिए।।

बादल   तुझे  गुरूर  बरसने   पे  बहुत  है ।

सावन  मेरा  जले तो बुझाया न  कीजिये ।।

इल्जाम  ज़माने   का  बेहिसाब  है   यहां  ।

अब रात इस शहर में बिताया न कीजिये ।।

कुछ खास तजुर्बो  से सबक आम हो गया ।

जो गिर गया नजर  से उठाया न  कीजिये ।।

शायद   तेरे  फरेब   की   चर्चा  बुलन्द  है ।

अब कब्र पर चराग  जलाया  न  कीजिये ।।

देखा  तुझे  तो  होश  गवाता  चला  गया ।

अपना नकाब रुख से  हटाया न कीजिये ।।

            -नवीन मणि त्रिपाठी

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