तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

सियासत दां की गद्दारी ने उसको मार डाला है


------***ग़ज़ल***-----

करो  तुम  शौक  से हमला यहाँ हाथों  में  ताला  है ।
मेरी  आदत  में  शामिल  है  मुझे  गांधी ने पाला है ।।

मालदा  को  छुपा  कर  मीडिया तू फख्र कर लेकिन ।
दिखा बिकना  तेरा सबको तुझे दिल  से  निकाला है ।।

तम्बुओं  में  है जो जीता  वो  वाशिंदा   है  कश्मीरी ।
किसी  सरकार  के  साये  तले  लुटता  निवाला   है ।।

बहन बेटी को खोकर भी वतन  कश्मीर  वह माँगा ।
सियासत  दां  की  गद्दारी  ने उसको मार  डाला है ।।

रखो  भूखा  ये मतदाता ,,  रहें   रोटी  पे  ही  नज़रें ।
चन्द  टुकड़ो  पे  ये  सरकार  चलनी पांच साला है ।।

गोलिया  खा  के  चिल्लाना और खामोश  हो जाना ।
फितरते हिन्द का जज्बा तू किस  साँचे में ढाला है ।।

गुलामी दस्तकें  देती , तू  बस कुर्सी से चिपका  रह ।
तेरे  जालिम   इरादों  पर  उजाला  ही  उजाला  है ।।

कहो मत पीठ का  इसको धँसा सीने  में  है खंजर ।
सराफत में मिटे इस मुल्क का  निकला दीवाला है।।

चुटकियों  में  मसल देने का जज्बा  रोज  सुनता  हूँ ।
नहीं क्या आब है तुझमे या  तेरा दिल  भी  काला है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

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